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Friday, 9 October 2020

मेरी कविता जैसे हो तुम!


           

 

 मेरी कविता जैसे हो तुम!

माना मुझे कविता लिखना नहीं 

आता ,पर मेरे अंतर्मन से निकले 

हर शब्दों का अहसास हो तुम।

मेरे प्यार की एक अलग पहचान
हो ,तुम जिसकी दर्द भरी अपनी
एक अलग कहानी हो तुम।
मेरी परिकल्पना के एक एक
कणों में मौजूद हो तुम, 
मेर कविता तो नहीं फिर भी मेरी  
कविता जैसे ही,हो तुम।
मेरी आँखों के वो स्वप्निल एहसास
हो,तुम जो नित नित दिन सपने
संजोते है।
मैं एक कवि तो नहीं पर मेरी
कविता तुम बिन कभी पूरी भी
नहीं।………
मेरे प्यार के प्यास की वो
आस हो,तुम जो नए नए
राग रोज बुनती है।
माना! तुम मेरी कविता नहीं

फिर भी, मेरी कविता के एक

एक शब्दों जैसे ही हो तुम

 

उषा यादव्
हैदराबाद, तेलंगाना

4 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सराहनीय ।
    सादर

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