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Saturday, 26 December 2020

मुक़्क़मल हुआ हो इश्क़




                                                मुक़्क़मल हुआ हो इश्क़ जिसका

उन हाथों की लकीर देखनी है

जिसने रांझा के लिए अपना सब कुछ छोड़
दिया मुझे इश्क़ मे दीवानी हीर देखनी है

मुक़्क़मल हुआ हो इश्क़ जिसका
उन हाथों की लकीर देखनी है....
छोड़ के तुझे बस मै ही तड़पी हूं
शायद कभी मुलाक़ात कर चाय पर 
मुझे तेरे भी दिल की पीर देखनी है

मुझसे दूर जाने को तूने हजार बहाने बता दिये
रोका किसने था तुझे आज मुझे वो जंजीर देखनी है

मुकम्मल हुआ हो इश्क़ जिसका मुझे उन हाथों की लकीर देखनी है.....

नेहा चंदरदीप
(राजस्थान)

3 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. रोका किसने था तुझे
    आज मुझे
    वो जंजीर देखनी है
    बेहतरीन ..
    सादर..

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  3. शुभ हो नया साल । सुन्दर रचना।

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