मुक़्क़मल हुआ हो इश्क़ जिसका
उन हाथों की लकीर देखनी है
जिसने रांझा के लिए अपना सब कुछ छोड़
दिया मुझे इश्क़ मे दीवानी हीर देखनी है
मुक़्क़मल हुआ हो इश्क़ जिसका
उन हाथों की लकीर देखनी है....
छोड़ के तुझे बस मै ही तड़पी हूं
शायद कभी मुलाक़ात कर चाय पर
मुझे तेरे भी दिल की पीर देखनी है
मुझसे दूर जाने को तूने हजार बहाने बता दिये
रोका किसने था तुझे आज मुझे वो जंजीर देखनी है
मुकम्मल हुआ हो इश्क़ जिसका मुझे उन हाथों की लकीर देखनी है.....
नेहा चंदरदीप
(राजस्थान)
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रोका किसने था तुझे
ReplyDeleteआज मुझे
वो जंजीर देखनी है
बेहतरीन ..
सादर..
शुभ हो नया साल । सुन्दर रचना।
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