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Wednesday 7 October 2020

चाय के जैसी सादगी



 


चाय के जैसी सादगी

सुबह के जैसी ताज़गी 

भँवरे जैसा बेघर है तू

हवा के जैसी आवारगी।


देख मुझे मैं लिपट रहीं हूँ

बिन पानी के रपट रही हूँ

भर ले मुझे आग़ोश में अपनी

मैं तेरे अन्दर सिमट रही हूँ


आओ चलती हवा से कह दें

छेड़ दें साज, गीत, तरन्नुम।

ये समा भी कुछ ठहर जाएगा

जब मिलो सुबह की चाय के संग तुम।।


माही गिल

राजस्थान 

3 comments:

  1. बहुत खूबसूरत...👌👍

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. बहुत ही खूबसूरत रचना 👍

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