चाय के जैसी सादगी
सुबह के जैसी ताज़गी
भँवरे जैसा बेघर है तू
हवा के जैसी आवारगी।
देख मुझे मैं लिपट रहीं हूँ
बिन पानी के रपट रही हूँ
भर ले मुझे आग़ोश में अपनी
मैं तेरे अन्दर सिमट रही हूँ
आओ चलती हवा से कह दें
छेड़ दें साज, गीत, तरन्नुम।
ये समा भी कुछ ठहर जाएगा
जब मिलो सुबह की चाय के संग तुम।।
माही गिल
राजस्थान
बहुत खूबसूरत...👌👍
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ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना 👍
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