समर तुम्हें लड़ना होगा
सुनो, सुकुमारियों अपनी खातिर
दृढ़ प्रण तुम्हें अब करना होगा
त्यागकर कोमल मार्ग तुम्हें अब
अग्निपथ चयन कर चलना होगा
बहुत ढो चुकी भार व्यथा का
लपट ज्वाला बन जला दो तुम
धूलि कन जो हैं तुम्हें समझते
संहारिका बन उन्हें दिखा दो तुम
मौन तोड़ सदियों का तुमको
हस्त शस्त्र धारण करना होगा
अब निर्झर शीतल धार नहीं
अग्नि अबाध दरिया बनना होगा
आभूषण लालच छोड़ तुम्हें
अंग शस्त्र भूषित करना होगा
अपनी लाज बचाने को तन्याओं
अग्निकुंड तुम्हें बनना होगा
देवालय,धर्म चौखटें लांघकर
पाप- पुण्य छोड़ बढ़ना होगा
अपने कोमल गात का तुमको
स्वयं रक्षण अब करना होगा
उर, मस्तिष्क से मूर्तियों का भ्रम
खोल हटा, सत्यदर्शी बनना होगा
तार्किक, शक्तिशालिनी बनकर
देह,अधिकार समर डट लड़ना होगा
~ डॉ. राजकुमारी
सहायक प्रवक्ता
नई दिल्ली
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