मत झाँक मुझे चँदा खिड़की की ओट से,
आती है उसकी याद, दिल रोता है ज़ोर से।
चाँदनी में लिपटी संसार ना दिखा,
'प्रीति'की तू रश्में हज़ार ना सीखा।
बहता है काज़ल आँखियों के कोर से
जाती नहीं है याद,
मेरे दिल के ठौर से।
बहारों के मौसम का श्रृंगार ना दिखा,
कैसे रोती है रात बेज़ार ना दिखा।
मत झाँक मुझे सूरज आँगन में भोर से,
पुरानी 'प्रीति' की अगन, दिल रोता ज़ोर से।
टूटे दिल को मेरे तू प्यार ना सीखा,
कैसे बिकता है दिल बाज़ार ना दिखा।
मत झाँक मुझे चँदा खिड़की की ओट से,
आती है उसकी याद, दिल रोता ज़ोर से।
प्रीति मधुलिका
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