भारत दुनियाँ का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है इसके बावजूद भी भारतीय महिलाओं की स्थिति कैसी है ये किसी से छुपा नही है। भारत जैसे देश में महिलाओं की दयनीय स्थिति को आज के परिपेक्ष्य में अनदेखा नहीं किया जा सकता। आए दिन यौन शोषण, सामूहिक बलात्कार और घरेलू हिंसा जैसे जघन्य अपराध स्त्रियों के विरुद्ध होते हैं जो बहुत कम सामने आ पाते हैं और जो सामने आते हैं वो राजनीतिक पार्टियों और भ्र्ष्ट तंत्र की बलि चढ़कर गहरे गड्ढे में दब जाते हैं। स्त्रियों के प्रति विभेदी नीतियां, छल-कपट, घृणित मानसिकता और दोहरे चरित्र सब प्रत्यक्ष हैं।
अपराध के विकृत रूप और दोगली नीतियां आज जघन्य अपराधों के पोषक बनते जा रहे है। महिलाओं के विरुद्ध बढ़ रहे अपराधों में बेमुरव्वत लोग, चाटुकार नेता, भ्र्ष्ट पुलिस और बिकी हुई कानून व्यवस्था, पैसा और पॉवर के दम पर खेले गए कानूनी दांव-पेंच, सोयी हुई जनता, सरकारों का प्रश्रय और यहां तक कि मुख्यधारा मीडिया ने भी इसका ग्राफ बढ़ाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी है।
इस देश की स्त्रियों ने खूब संताप एवं त्रासदियों को झेला है और यदि अब भी सुप्तावस्था में रही तो कोई सुरक्षा कवच होगा, कोई चश्मदीद गवाह होगा, कोई सबूत या फिर कोई स्त्री मुव्वकिल होगी भी या नहीं, इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
प्राचीनकाल से प्रचलित समाज की दोहरी नीतियां और सामाजिक व्यवस्थाओं ने महिला एवं पुरुष के बीच की खाई को सदैव गहरा करने का ही काम किया है जिसे पाटना अब बहुत जरूरी हो गया है और ये सही समय भी है।
हे पुरुष!
तुम क्यों दिखाते हो अपने आप को श्रेष्ठ और स्वछंद? क्यों दिखाते हो कि हो तुम दबंग! क्यों देते हो नारीवादी होने का छद्म नारा? क्यों समानता नही चाहते तुम? क्यों है ये विभेद तुम्हारे संस्कारों में?
पीड़िताओं के लिए भी तुम्हारी न्याय की तुलाओं में असमानताएं हैं। नकली रुआब, झूठे खिताब, जातीय विभेद और सांप्रदायिक रंजिश जैसी इन कुंठाओं से उभरकर तुम कब निष्पक्ष रूप अपनाओगे? समानताऐं क्यों नागवार गुजरती हैं तुम्हें? क्यों? क्यों स्त्रियों की स्वतंत्रता देखी नहीं जाती? जब रीढ़ तोड़ते हो, जुबां काटते हो और उनके लिबासों को खूनी धब्बो से लिथड़ा देखकर जो मर्दानी शक्तियों का प्रदर्शन करते हो तब असल में वो मर्दानगी नही बल्कि तुम्हारी बुजदिली के पुख़्ता सबूत पेश कर रहे होते हो। तुम्हारी इन सामाजिक व्यवस्थाओं ने जात-बिरादरी, मर्द-औरत, धौंस, धमकी और ज़ोर जबरदस्ती के साथ छल-कपट से घृणित मानसिकता के नाम पर सम्पूर्ण राष्ट्र को दिग्भ्रमित कर दिया है। तुम कब झूठे सभ्यताओं और संस्कारों का राग अलापना बन्द कर मानवता की कसौटी पर स्वयं को परख पाओगे?...कब?
मुखातिब हो गई हूं मुखौटाई छवियों से!
योर ओनर! अब मेरी दलीलों को सुनिए! हां, मैंने ही कहा था कि जुबां काट दें मेरी! मैंने ही हथौड़े दिए हैं इन्हें रीढ़ तोड़ने को! शायद उन दूधमुँही बच्चियों ने भी जो महज़ मुस्कुराती हैं, हाथ पांव हिलती हैं और तुतलाती तक नहीं! उन्होंने भी उकसाया होगा कि उनका ये इंसान से हैवान रेप कर डाले! मुझ जैसी लहुलुहान, नोची-खरोंची और संवेदनशील अंगों में लोहे की रॉड, शीशे और मोमबततियां घुसेड़ देने पर भी आज कटघरे में खड़ी है और दरवाज़ा खटखटा रही है उस सदन का जो सर्वोपरि न्याय का सूचक है।
हे ईश्वर!
देखो कितनी लंबी कतार हैं! देखो! देखो हम स्त्रियां इंसाफ लेने आई है! टूटी रीढ़, कटी जुबान और आबरु गंवा कर! गुहार लगा रहीं हैं आंख से पट्टी हटाने की और न्याय के तराजू में समान तुलने की। कीजिए इंसाफ! कीजिये! या बाँधें रखिये पट्टी झूठे न्याय की।
हे नारीयों!
उम्मीद छोड़ दो। नही होगा न्याय! नही होगी सुनवाई और ना ही होगा कोई खड़ा, तुम्हारी पक्ष में। तुम्हें
स्वयं के लिए लड़ना होगा। निर्भयता से प्रतिरोध करना होगा और उठाने होंगे कुछ ठोस कदम स्वयं की रक्षा के लिए।
हम भी देश की बेटियां हैं! हमें भी वाई प्लस सुरक्षा चाहिए। हमें अपराध बोध और अफ़सोस जैसे भावों को तिलांजलि देनी होगी। चौखट लांघ बाहर आना होगा और महिला सुरक्षा के पदों पर भीगी बिल्ली बन बैठी स्त्रियों को नींद से जगाना होगा। ये दुबकने का नहीं बल्कि महिलाओं को बचाने का वक़्त है। जो आज भय से घरों में दुबके बैठे हैं, वो एक बार अवश्य पीड़िताओं की तस्वीरें देखें! फिर अपनी बच्चियों को उसी हाल में सोच कर अपने आप से सवाल करें। शायद मन के किसी कोने में कोई भाव उभर आए और वहशीपन और दरिंदगी के खिलाफ जुबान खुल जाए। नपुंसक वार्तालाप को छोड़कर धरातल पर संघर्षरत होना होगा, नही तो श्मशानों में चिताओं के ढेर होंगे फिर करते रहना प्रलाप।
मैं पूर्व प्रकाशित एक लेख में भी कह चुकी हूँ और आज फिर कह रही हूं|
ये दौर स्त्री वर्ग के लिए अंधकारमय युग के नाम से इतिहास में अंकित किया जायेगा।
डॉक्टर राजकुमारी
प्रवक्ता जाकिर हुसैन कॉलेज
नई दिल्ली
बहुत खूब लिखा है। आज की समसामयिक स्थिति पर व्यग्यं करता एक प्रासंगिक लेख।।
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