मैं चुप हूँ, मैं चुप हूँ।
...:मैं शांत हूँ ठहरे पानी सा..
मैं चुप हूँ, मैं चुप हूँ।
मैं चुप हूँ बेजुबानी सा।
है दिल में समुंदर दबा हुआ,
मैं शांत हूँ ठहरे पानी सा।।
जो तू सुनती नहीं, मैं कहता वही।
तुझे फिक्र नहीं, मेरा ज़िक्र नहीं।।
करूँ किस्सा ए महोब्बत बयाँ कैसे?
मेरा ईश्क़ अधूरी कहानी सा।
है दिल में समुंदर दबा हुआ,
मैं शांत हूँ ठहरे पानी सा।।
पल पल, पल पल, हर पल,
छाई है कैसी ये उलझन?
तुझे इकरार नही,
मेरा इज़हार वही।
मैं थाम लूँ कैसे दामन को?
तेरा अक्स हवा की रवानी सा।
है दिल में समुंदर दबा हुआ,
मैं शांत हूँ ठहरे पानी सा।।
है दिल में हसरतें जवां जवां।
है फ़िज़ा में बिखरा धुंआ धुंआ
लब्ज़ मेरे बेबस है तो क्या?
मैं पढ़ता हूँ तेरा कलमा दुआ।
मैं काफ़िर नहीं ख़ुदा की कसम,
तेरा नाम लबों पे रब्बानी सा।।
है दिल में समुंदर दबा हुआ,
मैं शांत हूँ ठहरे पानी सा।।
मैं चुप हूँ, मैं चुप हूँ,
मैं चुप हूँ बेजुबानी सा।
है दिल में समुंदर दबा हुआ,
मैं शांत हूँ ठहरे पानी सा।।
सुनील पंवार (स्वतंत्र युवा लेखक:- एक कप चाय और तुम)
रावतसर
जिला:-हनुमानगढ़(राजस्थान)
वाह.. बेहद खूबसूरत रचना..! 👌👍
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