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Sunday, 18 October 2020

वो चार लोग






 वो चार लोग

बचपन से लेकर आज तक दूंढ रही हूँ मैं, 

कहाँ है वो चार लोग जिनके लिए अपनो से डरी मैं, 

कहाँ हैं वो चार लोग जिनके लिए बचपन से दबी मैं, 

कहाँ हैं वो चार लोग जिनके लिए अपने सपने छोड़े मैंने, 

कहाँ हैं वो चार लोग जिनके लिए हँसना छोड़ दिया मैंने, 

 किया मुझे मेरे ही सपनो मे गुम मिटा दिये मेरे सारे ख़्वाब, 

कहते हैं वो चार लोग ऐसे देखेंगे तो क्या कहेंगे, 

क्या सोचेंगे वो चार लोग यह सोचकर अपनी सोच खो दी मैंने, 

और आज खोजती हूँ मैं वो चार लोगो को जिन्होंने मेरे जन्म से लेकर

आज तक लड़की होना कितना गलत है ये समझाया,

मुझे दहलीज दिखाई और खुद आसमान देखते थे, 

मेरे पंख तोड़ कर ख़ुद उड़ाने भरते रहे, 

कहाँ है आज वो चार लोग जब मेरी आबरू लुटती रही बाजारों में, 

जब जब ढूँढ़ा उन्हे ना मिले मुझे वो चार लोग, 

आज मेरी मौत की शैया मे आए नजर मुझे वो चार लोग,

जिनकी खुशी के लिए मैंने ख़ुदको तबाह कर दिया, 

आज नजर आए मुझे वो चार लोग।।।


श्रीमती नीलिमा 

जबलपुर 

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