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Sunday, 18 October 2020

इस क्षणिक जीवन में

 



इस क्षणिक जीवन में

हर स्त्री चाहती है

एक ऐसा कंधा

जो उसके मन का बोझ ढो सके

जिस पर सर रखकर

वो हो जाना चाहती है निश्चिंत

मन में उपजे हर विषाद का

विराम चाहती है वहां

जानती है इसकी मजबूती

और कई रिश्तों के 

टंगे हैं इस पर झोले

और सहजता से उठा लेता है

ये सबका बस्ता

नभ की तरह अटल है

इस पर किया जाने वाला विश्वास

कोई अलंकार इसकी विशिष्टता

को नहीं कर पाता चिन्हित

इसका श्रृंगार इसकी बलिष्ठता है

हर स्त्री बन जाना चाहती है डेल्टा

उस विशाल सागर में समाहित होने से पूर्व

खामोशी और उदासीनता के आवरण में 

वो बन जाना चाहती है उन अधरों की मुस्कान

इस क्षणिक जीवन में

चार कंधों से पहले वो

चाहती है एक कंधा!!


ममता धवन 

(नई दिल्ली )

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